
दो ध्रुवीयता का अंत THE END OF BIPOLARITY Full Chapter Notes | |
Board | NCERT/ RBSE |
CLASS | Class 12th |
Subject | Political Science |
Book | समकालीन विश्व राजनीति (Contemporary World Politics) |
Chapter | Chapter 1 |
Chapter Name | दो ध्रुवीयता का अंत THE END OF BIPOLARITY ( Full chapter ) |
Medium | Hindi |
दो ध्रुवीयता का अंत (दो ध्रुवीयता का अंत कब हुआ)
शीत युद्ध के प्रतीक को दर्शाती वर्ष 1961 में बनी बर्लिन की दीवार को 9 नवंबर 1989 को जनता के द्वारा गिरा दिया गया।
25 दिसंबर 1991 को सोवियत संघ का विघटन 15 गणराज्यों के रूप में हो गया।
सोवियत संघ का जन्म, सोवियत व्यवस्था (प्रणाली)
वर्ष 1917 की रूसी बोल्शेविक क्रांति के बाद समाजवादी सोवियत गणराज्य संघ अस्तित्व में आया।
सोवियत संघ में समतावादी समाज के निर्माण के लिए एक केंद्रीकृत योजना, राज्य के नियंत्रण पर आधारित और साम्यवादी दल द्वारा निर्देशित व्यवस्था सोवियत प्रणाली के नाम से पहचानी गई।
दो ध्रुवीयता का अंत पाठ्यपुस्तक प्रश्न-उत्तर pdf
सोवियत प्रणाली की विशेषताएं-
- सोवियत प्रणाली पूंजीवादी व्यवस्था के विरोध तथा समाजवाद के आदर्शों से प्रेरित थी।
- सोवियत प्रणाली में नियोजित अर्थव्यवस्था थी।
- साम्यवादी पार्टी का दबदबा था।
- न्यूनतम जीवन स्तर की सुविधा सभी नागरिकों को उपलब्ध थी।
- बेरोजगारी का अभाव था।
- उन्नत संचार प्रणाली।
- मिल्कियत का प्रमुख रूप राज्य का स्वामित्व।
- उत्पादन के साधनों पर राज्य का नियंत्रण।
दूसरी दुनिया
पूर्वी यूरोप के देशों को समाजवादी प्रणाली की तर्ज पर ढ़ाला गया था, इन समाजवादी देशों को ही दूसरी दुनिया की संज्ञा दी गई।
मिखाईल गोर्वाचेव और सुधार –
1980 के दशक में मिखाईल गोर्वाचेव ने राजनीतिक सुधारों तथा लोकतांत्रिकरण को अपनाया। मिखाईल गोर्वचिव ने पुनर्रचना (पेरेस्ट्रोइका) ओर खुलेपन (ग्लास्नोस्त) के नाम से आर्थिक सुधार लागू किए।
सोवियत संघ की समाप्ति की घोषणा 25 दिसंबर 1991 में वोरिस येल्तसिन के नेतृत्व में पूर्वी यूरोप के देशों ने तथा रूस, यूक्रेन एवं बेलारूस ने सोवियत संघ की समाप्ति की घोषणा की।
स्वतंत्र राज्यों का राष्ट्रकुल (CIS)
सोवियत संघ के विघटन के बाद 15 नए देशों का उदय हुआ और इन सभी देशों ने एक अंतः-सरकारी संगठन का निर्माण किया जिसकी सदस्यता स्वैच्छिक थी, इसे ही स्वतंत्र राज्यों का राष्ट्रकुल (CIS) कहा गया। यह एक ऐसा संघ है जो अपने सदस्य देशों के बीच व्यापार, श्रम और वस्तुओं की आवाजाही बनाए रखता है।
सोवियत संघ के नेता
व्लादिमीर लेनिन
रूस के पहले चुने हुए राष्ट्रपति (1991-1999); कम्युनिस्ट पार्टी में सत्ता केंद्र तक पहुँचे; गोर्बाचेव द्वारा मास्को के मेयर बनाए गए; बाद में गोर्बाचेव के आलोचकों में शामिल और कम्युनिस्ट पार्टी से इस्तीफा 1991 में सोवियत संघ के शासन के खिलाफ विरोध का नेतृत्व; सोवियत संघ के विघटन में केंद्रीय भूमिका निभाई; साम्यवाद से पूँजीवाद की ओर संक्रमण के दौरान रूसी लोगों को हुए कष्ट के लिए ज़िम्मेदार ठहराया गया।
जोजेफ स्टालिन
लेनिन के उत्तराधिकारी; सोवियत संघ के मजबूत बनने के दौर में (1924-1953) नेतृत्व किया; औद्योगीकरण को तेजी से बढ़ावा और खेती का बलपूर्वक सामूहिकीकरण; दूसरे विश्व युद्ध में जीत का श्रेयः 1930 के दशक के भयानक आतंक, पार्टी के अंदर अपने विरोधियों को कुचलने और तानाशाही रवैये के लिए जिम्मेदार ठहराए गए।
निकिता ख्रुश्चेव
सोवियत संघ के राष्ट्रपति (1953-1964); स्टालिन की नेतृत्व – शैली के आलोचक; 1956 में कुछ सुधार लागू किए; पश्चिम के साथ ‘शांतिपूर्ण सहअस्तित्व’ का सुझाव रखा; हंगरी के जन- विद्रोह के दमन और क्यूबा के मिसाइल संकट में शामिल।
लिओनिड ब्रेझनेव
एशिया की सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था का सुझाव दिया; अमरीका के साथ संबंधों में तनाव की कमी के दौर से संबंद्ध; चेकोस्लोवाकिया के जन-विद्रोह के दमन और अफगानिस्तान पर आक्रमण में शामिल।
मिखाइल गोर्बाचेव
सोवियत संघ के अंतिम राष्ट्रपति (1985-1991); पेरेस्त्रोइका (पुनर्रचना) और ग्लासनोस्त (खुलेपन) के आर्थिक और राजनीतिक सुधार शुरूकिए; अमरीका के साथ हथियारों की होड़ पर रोक लगाई; अफगानिस्तान और पूर्वी यूरोप से सोवियत सेना वापस बुलाई; जर्मनी के एकीकरण में सहायक ; शीतयुद्ध समाप्त किया; सोवियत संघ के विघटन का आरोप लगा।
बोरिस येल्तसिन
रूस के पहले चुने हुए राष्ट्रपति (1991-1999); कम्युनिस्ट पार्टी में सत्ता केंद्र तक पहुँचे; गोर्बाचेव द्वारा मास्को के मेयर बनाए गए; बाद में गोर्बाचेव के आलोचकों में शामिल और कम्युनिस्ट पार्टी से इस्तीफा 1991 में सोवियत संघ के शासन के खिलाफ विरोध का नेतृत्व; सोवियत संघ के विघटन में केंद्रीय भूमिका निभाई; साम्यवाद से पूँजीवाद की ओर संक्रमण के दौरान रूसी लोगों को हुए कष्ट के लिए ज़िम्मेदार ठहराया गया।
एक ध्रुवीय विश्व
वर्ष 1991 में सोयित संघ के विघटन के बाद विश्व में एकमात्र महाशक्ति के रूप में अमेरिका ही बचा रहा और सभी शक्तियों का केंद्रीकरण अमेरिका के इर्द-गिर्द होने लगा। इस तरह से विश्व एक ध्रुवीय विश्व में परिवर्तित हो गया। एक ध्रुवीय विश्व के बनने के बाद कई सारे परिणाम देखने को मिले जैसे अंतर्राष्ट्रीय शक्ति संबंधों में बदलाव, पूंजीवादी व्यवस्था का प्रचार-प्रसार, साम्यवादी व्यवस्था का कमजोर होना, उदारवादी लोकतांत्रिक व्यवस्था का मजबूत होना इत्यादि।
दो ध्रुवीयता का अंत NCERT Solutions
सोवियत संघ के विघटन के प्रमुख कारण
- नागरिकों की आकांक्षाओं का पूरा ना हो पाना।
- सोवियत प्रणाली पर नोकरशाही का शिकंजा।
- साम्यवादी पार्टी का राजनीति पर अंकुश।
- संसाधनों का अधिकतम उपयोग परमाणु हथियारों पर।
- प्रोद्योगिकी ओर बुनियादी ढांचे में पश्चिम के देशों की तुलना में पीछे होना।
- रूस का वर्चस्वशाली होना।
- गोर्बाचेव द्वारा किए गए सुधारों का विरोध होना।
- अर्थव्यवस्था का गतिरूद्ध होना और उपभोक्ता वस्तुओं की कमी।
- राष्ट्रवादी भावनाओं और संप्रभुता की इच्छा का उभार।
- सोवियत प्रणाली का सत्तावादी होना।
- साम्यवादी पार्टी का जनता के प्रति जवाबदेह ना होना।
सोवियत संघ के विघटन के परिणाम
- शीत युद्ध का संघर्ष समाप्त हो गया।
- एक ध्रुवीय विश्व अर्थात अमेरिकी वर्चस्व का उदय।
- हथियारों की होड़ की समाप्ति।
- सोवियत गुट का अंत ओर 15 नए देशों का उदय।
- रूस सोवियत संघ का उत्तराधिकारी बना।
- विश्व राजनीति में शक्ति संबंधों में परिवर्तन।
- समाजवादी विचारधारा पर प्रश्नचिन्ह लग गया।
- पूंजीवादी उदारवादी व्यवस्था का वर्चस्व।
शॉक थेरेपी-
शॉक थेरेपी का शाब्दिक अर्थ हे आघात पहुंचा कर उपचार करना। साम्यवाद के पतन के बाद पूर्व सोवियत संघ के गणराज्य एक सत्तावादी समाजवादी व्यवस्था से लोकतांत्रिक पूंजीवादी व्यवस्था तक के कष्टप्रद संक्रमण से हाकर गुजरे। रूस, मध्य एशिया के गणराज्य और पूर्वी यूरोप के देशों में पूंजीवादी की ओर संक्रमण का एक खास मॉडल अपनाया गया जिसे शॉक थेरेपी कहा गया। यह मॉडल अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक द्वारा निर्देशित था।
शॉक थेरेपी की विशेषताएं
- मिल्कियत का प्रमुख रूप निजी स्वामित्व।
- राज्य की संपदा का निजीकरण।
- सामूहिक फार्म की जगह निजी फार्म।
- मुक्त व्यापार व्यवस्था को अपनाना।
- मुद्राओं की आपसी परिवर्तनीयता।
- पश्चिमी देशों की आर्थिक व्यवस्था से जुड़ाव।
- पूंजीवाद के अतिरिक्त किसी भी वैकल्पिक व्यवस्था को स्वीकार नहीं किया गया।
शॉक थेरेपी के परिणाम
- रूस का ओद्योगिक ढांचा चरमरा गया।
- आर्थिक परिणाम अनुकूल नही रहे।
- रूसी मुद्रा रूबल में भारी गिरावट।
- समाज कल्याण की पुरानी व्यवस्था का अंत।
- विश्व की सबसे बड़ी गराज सेल। ( महत्त्वपूर्ण उद्योगों की कीमत कम से कम करके आंकी गई और उन्हें औने-पौने दामों में बेच दिया गया।)
- अधिकांश नागरिकों ने अपने अधिकार-पत्र कालाबाजारियों के हाथों बेच दिये क्योंकि उन्हें धन की ज़रूरत थी ।
- लगभग 90 प्रतिशत उद्योगों को निजी हाथों या कंपनियों को बेचा गया।
- आर्थिक विषमता में वृद्धि।
- सामूहिक खेती की प्रणाली समाप्त हो चुकी थी
- खाद्यान्नों का संकट।
- माफिया वर्ग का उदय।
- रूस में कुल डेढ़ हज़ार बैंक और अन्य वित्तीय संस्थान थे जिनमें से लगभग आधे ‘शॉक थेरेपी’ के परिणामस्वरूप दिवालिया हो गए।
- लोकतांत्रिक संस्थाओं के निर्माण ना होने के कारण कमजोर संसद व राष्ट्रपति को अधिक शक्तियां जिससे सत्तावादी राष्ट्रवादी राष्ट्रपति शासन का उदय।
संघर्ष और तनाव के क्षेत्र
पूर्व सोवियत संघ के अधिकांश गणराज्य संघर्ष की आशंका वाले क्षेत्र बने रहे और इन देशों में बाहरी ताकतों की दखलअंदाजी भी बढ़ी। रूस के दो गणराज्य चेचन्या और दागिस्तान में हिंसक अलगाववादी आंदोलन चले। पूर्वी यूरोप में चेकोस्लोवाकिया दो भागों चेक ओर स्लोवाकिया में बंट गया।
वाल्कन क्षेत्र-
बाल्कन गणराज्य यूगोस्लाविया गृह-युद्ध के कारण कई प्रांतों में बंट गया जिसमें शामिल वोस्त्रिया-हर्जेगोविना, स्लोवेनिया तथा क्रोएशिया ने स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर दिया।
बाल्टिक क्षेत्र बाल्टिक क्षेत्र के लिथुआनिया ने मार्च 1990 में स्वयं को स्वतंत्र घोषित किया। एस्टोनिया, लातविया ओर लिथुआनिया वर्ष 1991 में संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य बने और वर्ष 2004 में नाटो में शामिल हुए।
मध्य एशिया
मध्य एशिया के देश ताजिकिस्तान में 10 वर्षों तक अर्थात 2001 तक गृह युद्ध चलता रहा। अजरवेजान, आर्मेनिया, यूक्रेन, किर्गिस्तान और जॉर्जिया में भी गृह-युद्ध की स्थिति है।
मध्य एशियाई गणराज्यों में पेट्रोल के विशाल भंडार हैं। इसी कारण से यह क्षेत्र बाहरी ताकतों ओर तेल कंपनियों की प्रतिस्पर्धा का अखाड़ा भी बन गया है।
सोवियत संघ के विघटन का घटना चक्र
मार्च 1985 – : मिखाइल गोर्बाचेव सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव चुने गए। बोरिस येल्तसिन को रूस की कम्युनिस्ट पार्टी का प्रमुख बनाया। सोवियत संघ में सुधारों की श्रृंखला शुरू की।
1988 – : लिथुआनिया में आज़ादी के लिए आंदोलन शुरू। एस्टोनिया और लताविया में भी फैला।
अक्टूबर 1989 – : सोवियत संघ की घोषणा कि ‘वारसा समझौते’ के सदस्य अपना भविष्य तय करने के लिए स्वतंत्र हैं। नवंबर में बर्लिन की दीवार गिरी।
फरवरी 1990 : – गोर्बाचेव ने सोवियत संसद ड्यूमा के चुनाव के लिए बहुदलीय राजनीति की शुरुआत की। सोवियत सत्ता पर कम्युनिस्ट पार्टी का 72 वर्ष पुराना एकाधिकार समाप्त |
जून 1990 – : रूसी संसद ने सोवियत संघ से अपनी स्वतंत्रता घोषित की।
मार्च 1990 –: लिथुआनिया स्वतंत्रता की घोषणा करने वाला पहला सोवियत गणराज्य बना।
जून 1991 – : येल्तसिन का कम्युनिस्ट पार्टी से इस्तीफा। रूस के राष्ट्रपति बने।
अगस्त 1991 – : कम्युनिस्ट पार्टी के गरमपंथियों ने गोर्बाचेव के खिलाफ एक असफल तख़्तापलट किया।
सितंबर 1991 – : एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया, तीनों बाल्टिक गणराज्य संयुक्त राष्ट्रसंघ के सदस्य बने । ( मार्च 2004 में उत्तर अटलांटिक संधि संगठन में शामिल)
दिसंबर 1991- : रूस, बेलारूस और उक्रेन ने 1922 की सोवियत संघ के निर्माण से संबद्ध संधि को समाप्त करने का फैसला किया और स्वतंत्र राष्ट्रों का राष्ट्रकुल बनाया। आर्मेनिया, अजरबैजान, माल्दोवा, कज़ाकिस्तान, किर्गिजिस्तान, ताज़िकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान भी राष्ट्रकुल में शामिल। जार्जिया 1993 में राष्ट्रकुल का सदस्य बना। संयुक्त राष्ट्रसंघ में सोवियत संघ की सीट रूस को मिली।
25 दिसंबर, 1991 – : गोर्बाचेव ने सोवियत संघ के राष्ट्रपति के पद से इस्तीफा दिया। सोवियत संघ का अंत।
रूस और के साथ भारत के संबंध
भारत और सोवियत संघ
शीतयुद्ध के दौरान भारत और सोवियत संघ के संबंध बहुत मधुर थे। इससे आलोचकों को यह कहने का अवसर भी मिला कि भारत सोवियत खेमे का हिस्सा था। इस दौरान भारत और सोवियत संघ के संबंध बहुआयामी थे।
आर्थिक – सोवियत संघ ने भारत के सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों की ऐसे वक्त में मदद की जब ऐसी मदद पाना मुश्किल था। सोवियत संघ ने भिलाई, बोकारो और विशाखापट्टनम के इस्पात कारखानों तथा भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स जैसे मशीनरी संयंत्रों के लिए आर्थिक और तकनीकी सहायता दी। भारत में जब विदेशी मुद्रा की कमी थी तब सोवियत संघ ने रुपये को माध्यम बनाकर भारत के साथ व्यापार किया।
राजनीतिक – सोवियत संघ ने कश्मीर मामले पर संयुक्त राष्ट्रसंघ में भारत के रुख को समर्थन दिया। सोवियत संघ ने भारत के संघर्ष के गाढ़े दिनों, ख़ासकर सन् 1971 में पाकिस्तान से युद्ध के दौरान मदद की। भारत ने भी सोवियत संघ की विदेश नीति का अप्रत्यक्ष, लेकिन महत्त्वपूर्ण तरीके से समर्थन किया।
सैन्य – भारत को सोवियत संघ ने ऐसे वक्त में सैनिक साजो-सामान दिए जब शायद ही कोई अन्य देश अपनी सैन्य टेक्नालॉजी भारत को देने के लिए तैयार था। सोवियत संघ ने भारत के साथ कई ऐसे समझौते किए जिससे भारत संयुक्त रूप से सैन्य उपकरण तैयार कर सका।
संस्कृति – हिंदी फिल्म और भारतीय संस्कृति सोवियत संघ में लोकप्रिय थे। बड़ी संख्या में भारतीय लेखक और कलाकारों ने सोवियत संघ की यात्रा की।
रूस और अन्य पूर्व साम्यवादी देशों के साथ भारत के संबंध
- पूर्व साम्यवादी देशों के साथ भारत के संबंध अच्छे हैं, रूस के साथ विशेष रूप से प्रगाढ़ हैं।
- रूस ओर भारत दोनों का सपना बहुध्रुवीय विश्व का है।
- दोनों ही देश सहअस्तित्व, सामूहिक सुरक्षा, क्षेत्रीय संप्रभुता, स्वतंत्र विदेश नीति, अंतर्राष्ट्रीय झगड़ों का वार्ता द्वारा हल, संयुक्त राष्ट्र संघ के सुदृढ़ीकरण तथा लोकतंत्र में विश्वास रखते हैं।
- वर्ष 2001 में भारत और रूस द्वारा 80 द्विपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए।
- भारत रूसी हथियारों का एक बड़ा खरीददार है।
- रूस से तेल का आयात किया जाता है।
- परमाणिवक योजना ओर अंतरिक्ष योजना में रूस की मदद मिलती है।
- कजाकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के साथ ऊर्जा आयात को बढ़ाने के प्रयास हुए हैं।
- उज्वेकिस्तान में भारतीय कलाकारों को विशेषतः पसंद किया जाता है।