भारत की संविधान सभा (Constituent Assembly of India)
- संविधान निर्माण के लिए पहली विधिवत् संविधान सभा संयुक्त राज्य अमेरिका (फिलाडेल्फिया सम्मेलन- 1787) में गठित की गई थी।
- संविधान सभा के सिद्धांत के सर्वप्रथम दर्शन लोकमान्य तिलक के निर्देशन में तैयार ‘स्वराज विधेयक’ 1895 में हुये। स्वराज विधेयक को ‘कॉन्स्टिट्यूशन ऑफ इण्डिया बिल’ भी कहा जाता है।
- भारतीय शासन अधिनियम 1919 की उद्देशिका में यह निहित था कि भारतीय संविधान बनाने का उत्तरदायित्व ब्रिटिश संसद का था।
- भारत के लिए संविधान सभा का पहला स्पष्ट उल्लेख महात्मा गांधी ने 1922 में किया। उन्होंने कहा – “स्वराज ब्रिटिश संसद की ओर से उपहार के समान नहीं होगा बल्कि भारत के लोगों की आत्माभिव्यक्ति की घोषणा होगा।”
- 1928 में आई नेहरू रिपोर्ट (अध्यक्ष मोती लाल नेहरू) भारतीय संविधान निर्माण की दिशा में एक सशक्त प्रयास थी।
- 1934 में एम.एन. रॉय (नव मानवतावादी) तथा स्वराज पार्टी ने भी संविधान सभा की गांग उठाई। इसी वर्ष कांग्रेस कार्य समिति ने पहली बार संविधान सभा की औपचारिक रीति से मांग की। 1936 के फैजपुर अधिवेशन में कांग्रेस ने यह मांग रखी।
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने संविधान सभा के मुद्दे पर अपना पहला आधिकारिक रूख 1934 में स्पष्ट किया। कांग्रेस का मत था कि एक ऐसी संविधान सभा का गठन किया जाना चाहिए जो भारतीय जनता की इच्छा को अभिव्यक्ति करे।
- 1936 के फैजपुर कांग्रेस अधिवेशन में कांग्रेस ने सार्वभौमिक व्यस्क मताधिकार के आधार पर संविधान सभा के गठन को आवश्यक माना था।
- 1938 के कांग्रेस के अधिवेशन (हरिपुरा-गुजरात) में जवाहर लाल नेहरू ने कहा कि भारतीय संविधान का निर्माण एक संविधान सभा द्वारा किया जाए जो भारतीय जनता द्वारा वयस्क मताधिकार के आधार पर चुनी गई हो।
- जवाहरलाल नेहरू ने इस समस्या को बखूबी समझा और कहा कि “…. संविधान सभा की मांग भारतीय लोगों की स्वयं की शासन व्यवस्था बनाने की मांग है और संविधान सभा सिर्फ लोगों का समूह या वकीलों का समूह नहीं, बल्कि यह भारत का वो पथ है जहां से भारत रूढिवादी राजनैतिक एवं सामाजिक सरंचना को पीछे छोड़ते हुए नए समाज की सरंचना के लिए आगे बढ़ रहा है।
- जवाहर लाल नेहरू ‘संविधान सभा की मांग पूर्ण आत्मनिर्णय की सामूहिक मांग का प्रतिरूप है।’
- महात्मा गांधी ‘व्यापक राजनीतिक व दूसरे प्रकार की शिक्षा का माध्यम होने के अलावा संविधान सभा हमारी साम्प्रदायिक और अन्य विषमताओं का हल भी बता सकती है।’
- गाँधीजी ने 1939 में हरिजन में ‘द ओनली वे’ शीर्षक के अन्तर्गत एक लेख लिखा जिसमें उन्होंने विचार व्यक्त किया कि- संविधान सभा ही देश की देशज प्रकृति का और लौकेच्छा का सही अर्थों में तथा पूरी तरह से निरूपण करने वाला संविधान बना सकती है। उन्होंने घोषणा की कि साम्प्रदायिक तथा अन्य समस्याओं के न्यायसंगत हल का एकमात्र तरीका भी संविधान सभा ही है।
- 1945 में सप्रू समिति ने अपनी रिपोर्ट में संविधान निर्माण की योजना बनाई थी।
ब्रिटिश सरकार व संविधान सभा
- लॉर्ड लिनलिथगो प्रस्ताव/अगस्त प्रस्ताव 1940 “भारतीय संविधान स्वभावतः भारतवासी ही तैयार करेंगे।” पर इसमें ‘संविधान सभा’ शब्द का उल्लेख नहीं था।
- क्रिप्स मिशन, 1942 संविधान सभा के गठन की मांग स्पष्ट स्वीकार
- कैबिनेट मिशन, 1946 संविधान सभा की मांग को व्यवहारिक रूप से अमली जामा पहनाया गया।
केबिनेट मिशन तथा संविधान सभा का गठन 1946
- द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद 1945 के अंत में ब्रिटेन में संसद (कॉमन सभा) के आम चुनाव हुये जिसमें चर्चिल व उसकी कन्जर्वेटिव पार्टी चुनाव हार गयी तथा क्लीमेन्ट एटली की लेबर पार्टी की सरकार बनी।
- भारत की स्वतंत्रता व भावी स्थिति पर विचार हेतु प्रधानमंत्री एटली की सरकार ने तीन सदस्यीय कैबिनेट मिशन 24 मार्च 1946 को भारत भेजा। केबिनेट मिशन में ब्रिटेन मंत्रीमंडल के तीन सदस्य थे-
- (1) लॉर्ड पैथिक लॉरेन्स (अध्यक्ष) भारत मंत्री
- (2) स्टेफोर्ड क्रिप्स (सदस्य)
- (3) ए.वी. एलेक्जेण्डर (सदस्य)
- इस मिशन ने अपनी योजना 16 मई, 1946 को प्रकाशित की।
- महात्मा गांधी के अनुसार “कैबिनेट मिशन योजना उन परिस्थितयों में ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रस्तुत की जाने वाली श्रेष्ठ योजना थी।” –
- केबिनेट मिशन के महत्वपूर्ण प्रस्ताव-
- (1) भारतीय संघ (Federation of India) का गठन होगा जो ब्रिटिश भारत व देशी राज्यों से मिलकर बनेगा। कैबिनेट मिशन ने स्पष्ट रूप से मुस्लिम लीग की पाकिस्तान की मांग को अस्वीकार कर दिया।
- (2) संघ के पास केवल विदेश, रक्षा व संचार होगा।
- (3) अवशिष्ट विषय प्रान्तों के पास होंगे।
- (4) संविधान सभा का गठन होगा। संविधान सभा के गठन के संदर्भ में केबिनेट मिशन ने प्रमुख व्यवस्था इस प्रकार की-
- भारत का संविधान बनाने हेतु अप्रत्यक्ष निर्वाचन व मनोनयन के आधार पर एक संविधान सभा की स्थापना की जाएगी, जिसमें कुल 389 सदस्य होंगे। इनमें से 292 ब्रिटिश गर्वनर प्रांतों के, 93 देशी रियासतों और 4 चीफ कमीश्नर क्षेत्र (दिल्ली, अजमेर- मेरवाड़ा, कुर्ग, बलूचिस्तान) के प्रतिनिधि होंगे।
- गर्वनर प्रान्त 9: मद्रास, बम्बई, पश्चिमी बंगाल, बिहार, उड़ीसा, असम, पंजाब, संयुक्त प्रान्त तथा केन्द्रीय प्रान्त
- लगभग 10 लाख व्यक्तियों पर संविधान सभा में एक सदस्य होगा।
- प्रान्तों के लिए निर्धारित किए स्थान जनसंख्या के आधार पर विभिन्न समुदायों में बँटेंगे।
- प्रतिनिधि तीन समुदायों (1) सामान्य (2) मुस्लिम (3) सिक्ख से प्रान्त की जनसंख्या के अनुपात में चुने जायेंगे।
- प्रांतों को संविधान सभा में प्रतिनिधित्व आबादी के आधार पर दिया जाएगा तथा निश्चित किया गया कि प्रान्तीय विधानसभा में भेजने थे, उनका निर्वाचन प्रत्येक सम्प्रदाय अलग-अलग करेगा।
- में प्रत्येक सम्प्रदाय को जितने प्रतिनिधि संविधान सभा प्रत्येक समुदाय के लिए आवंटित सीटों के लिए प्रतिनिधियों का चुनाव प्रांतीय विधानसभाओं के निम्न सदन द्वारा उस समुदाय के सदस्यों द्वारा एकल संक्रमणीय मत तथा आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के आधार पर किया जाना था।
- देशी रियासतों के प्रतिनिधियों का चयन रियासतों के प्रमुखों द्वारा किया जाना था अर्थात् वे मनोनीत होंगे। लगभग 10 लाख व्यक्तियों पर एक।
- संविधान के निर्माण होने तक सभी दलों के प्रतिनिधियों को मिलाकर एक अन्तरिम सरकार का गठन किया जायेगा।
- प्रांतों के लिये अलग संविधान का निर्माण होगा।
- इस प्रकार केबिनेट मिशन योजना के आधार पर संविधान सभा के लिए चुनाव जुलाई-अगस्त, 1946 में 296 सीटों हेतु हुआ। इस चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को 208, मुस्लिम लीग को 73 तथा छोटे समूह व स्वतंत्र सदस्यों को 15 सीटें मिलीं। हालांकि देशी रियासतों को आवंटित की गई 93 सीटें भर नहीं पाई क्योंकि उन्होंने खुद को संविधान सभा से अलग रखने का निर्णय लिया।
- देशी राज्यों के प्रतिनिधित्व का तरीका देशी राज्यों व संविधान सभा के सदस्यों से बनी ‘वार्तालाप समिति’ (Negotiation Committee) द्वारा किया गया। देशी राज्यों के प्रतिनिधित्व के लिए दोनों तरीके मनोनयन (Nominated) व निर्वाचन (Election) को स्वीकार किया गया।
- जुलाई-अगस्त 1946 में संविधान सभा हेतु निर्वाचन हुए। ब्रिटिश प्रान्तों वाले सदस्यों का चुनाव उन प्रान्तों की विधायिकाओं के निम्न सदन ने किया।
- 15 अगस्त, 1947 के बाद भारत विभाजन के कारण प. बंगाल व पूर्वी पंजाब में संविधान सभा हेतु पुनः निर्वाचन हुए।
- इस प्रकार संविधान सभा आंशिक रूप से चुनी हुई और आंशिक रूप से नामांकित निकाय थी।
- केबिनेट मिशन ने संविधान सभा की संख्या 389 निर्धारित की थी पर पाकिस्तान के पृथ्थकरण के कारण 15 अगस्त, 1947 के बाद यह संख्या 389 से घटकर 324 रह गई।
- गर्वनर वाले प्रान्तों से 232, चीफ कमीश्नरीज-3, देशी राज्यों से 89 (संयुक्त राजस्थान से 12)
- गर्वनर प्रान्तों में 232 में से सर्वाधिक संयुक्त प्रान्त से 55 थे, द्वितीय मद्रास से 49, तृतीय बिहार से 36 थे। देशी रियासतों में सर्वाधिक हैदराबाद से 16 थे। पर हैदराबाद रियासत एकमात्र ऐसी बड़ी रियासत थी जिसके प्रतिनिधि प्रावधान होने के बावजूद संविधान सभा में शामिल नहीं हुए।