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भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएँ ( Important Salient Features of the Indian Constitution) PDF Notes
आज के इस आर्टिकल में भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन किया गया है इस आर्टिकल पढ़ने के बाद आप भारतीय संविधान के महत्वपूर्ण विशेषताओं से अवगत हो सकेंगे । यह पोस्ट भारतीय संविधान के विद्यार्थियों के लिए महत्वपूर्ण है यह PDF Notes UPSC, RPSC, MPPSC, UGC NET, DSSSB PGT, RPSC SCHOOL Lecture के लिये रामबाण साबित होगी ।
1.लोकप्रिय प्रभुसत्ता पर आधारित संविधान –
- इसका तात्पर्य है यह भारतीय जनता द्वारा निर्मित संविधान है और संविधान द्वारा अन्तिम शक्ति जनता को ही प्रदान की गयी अर्थात् प्रभुसत्ता का वास जनता में है।
- लोकप्रिय प्रभुसत्ता का विचार रूसों से जुड़ा हुआ है।
- प्रस्तावना में लिखा है – “हम भारत के लोग……दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में दिनांक 26 नवम्बर, 1949 को अंगीकृत, अधिनियमित व आत्मर्पित करते हैं।”
2. निर्मित, लिखित व सर्वाधिक व्यापक संविधान –
- लिखित संविधान-सरकार की सीमाएँ निर्धारित करता है, उसे जवाबदेह बनाता है तथा नागरिक अधिकारों व स्वतंत्रताओं को सशक्त बनाता है।
- आइवर जेनिग्स – ‘भारतीय संविधान विश्व का सर्वाधिक व्यापक संविधान है।’
- मूल संविधान में 22 भाग, 8 अनुसूचियाँ व 395 अनुच्छेद थे। अब अनुसूचियाँ 12 हो गयी है । 9वीं अनुसूचि प्रथम संविधान संशोधन (1951), 10वीं अनु. 52 वे संशोधन (1985) दल बदल, 11वीं वे 12वीं अनुसूचि क्रमश: 73 व 74 वें संविधान संशोधन (1992) से जोड़ी गयी ।
- संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान में केवल 7 अनुच्छेद, कनाडा के संविधान में 147 अनुच्छेद, ऑस्ट्रेलिया के संविधान में 128 अनुच्छेद और दक्षिण अफ्रीका के संविधान में 253 अनुच्छेद हैं, वहीं भारत के संविधान में मूल रूप से 395 अनुच्छेद हैं ।
संविधान की व्यापकता के कारण :
- संघ व राज्यों दोनों का एक ही संविधान ।
- मौलिक अधिकारों के अलावा उन पर प्रतिबंधों व नीति निर्देशक तत्वों की पृथक व्याख्या ।
- ST – SC व अल्पसंख्यों के लिए भाग-16 में अलग से व्यवस्था ।
- भाग-18 में संकटकालीन प्रावधान ।
- न केवल राजनैतिक बल्कि प्रशासनिक संबंधों व वित्तिय संबंधों का भी संविधान में वर्णन ।
- आलोचकों का कहना है कि भारतीय संविधान का निर्माण विश्व के विभिन्न देशों के सांविधानिक अनुभवों को ग्रहण कर के किया गया है और इसे ‘उधार के संग्रह का संविधान’ भी कहा जाता है। परंतु ऐसी आलोचना न केवल अतार्किक है बल्कि निराधार है और इस के संदर्भ में भीमराव अम्बेडकर के द्वारा 4 नवंबर, 1948 को संविधान सभा में दिया गया वक्तव्य बड़ा महत्वपूर्ण है जिसमें अंबेडकर ने माना था कि लिखित संविधानों के इतिहास को प्रारंभ हुए बहुत अधिक समय नहीं हुआ है और ऐसे संविधान के मूलभूत सिद्धांतों पर राजनीति शास्त्री एकमत होते हैं। इसलिए किसी देश के संविधान से कुछ प्रावधानों को ग्रहण करना किसी प्रकार की साहित्यिक चोरी नहीं है।
3.कठोरता व लचीलेपन का समन्वय (Compromise between Rigid and Flexibility)
- लचीला/नम्य संविधान – जहाँ साधारण कानून व संवैधानिक कानून दोनों में समान प्रक्रिया से संशोधन हो जाए उसे लचीला संविधान कहते हैं । उदाहरण – ब्रिटेन का संविधान।
- कठोर संविधान – जिसमें संविधान संशोधन की विशेष प्रक्रिया हो तथा आसानी से परिवर्तन नहीं हो उसे कठोर संविधान कहते हैं । उदहारण -USA का संविधान।
- इस प्रकार ब्रिटेन का संविधान विश्व का सबसे लचीला संविधान है जहाँ संसद किसी भी कानून का निर्माण या उसमें परिवर्तन कर सकती है, वहीं अमेरिका का संविधान कठोर संविधान की श्रेणी में आता है।
- भारतीय संविधान दोनों के मध्य है । संविधान के कुछ अनुच्छेद संसद के साधारण बहुमत से बदले जा सकते हैं जबकि बाकी के लिए अनु. 368 में विशेष बहुमत की प्रक्रिया है।
- भारतीय संविधान में लचीला और कठोर दोनों का मिश्रण किया गया है। लचीला संविधान यह इस अर्थ में है कि संविधान के बहुत सारे प्रावधान ऐसे हैं जिनमें किया जाने वाला परिवर्तन संसद कानून बनाने की साधारण प्रक्रिया के माध्यम से कर लेती है और इसके लिए कोई विशिष्ट प्रक्रिया अपनाई जाने की आवश्यकता नहीं होती है। जैसे कि
- अनुच्छेद 2 में भारत संघ में नए राज्यों का प्रवेश या स्थापना
- अनुच्छेद 3 में भारत संघ में नए राज्यों का निर्माण और वर्तमान राज्यों के क्षेत्र, सीमा तथा नामों में परिवर्तन
- अनुच्छेद 169 में किसी राज्य में विधान परिषद के सृजन या उत्सादन का कार्य इत्यादि।
- पर्याप्त लोचशीलता के कारण ही अब तक 105 संशोधन हो चुके है। दूसरी तरफ संविधान में कठोर प्रकृति वह है जिसे अनुच्छेद 368 में दिया गया है
जहाँ दो प्रकार की संशोधन विधियाँ दी गई है।
- पहली विधि वह है जिसमें कोई संशोधन संसद के दोनों सदनों में प्रत्येक सदन की कुल सदस्य संख्या के बहुमत और उपस्थित तथा मतदान करने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से किया जाता है और
- दूसरी विधि वह है जिसमें संसद के उपरोक्त विशेष बहुमत के साथ-साथ भारत में मौजूद राज्यों में से कम से कम आधे राज्यों के विधानमंडल के समर्थन या अनुमोदन की आवश्यकता होती है।
- के.सी. व्हीयर भी इन संशोधन के प्रावधानों की बुद्धिमता पूर्ण विविधता की प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि राज्यों के अधिकारों की सुरक्षा और संविधान के शेष भाग में संशोधन करने की सुलभता के कारण ही यह सुचारु संतुलन स्थापित हो पाया है।
4.संसदात्मक शासन प्रणाली (भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएँ PDF )
इसे ‘वेस्टमिनस्टर सरकार’, उत्तरदायी सरकार, ‘मंत्रीमण्डलीय सरकार’, या प्रधानमंत्री सरकार’ भी कहा जाता
- भारत में संसदीय प्रणाली संघ व राज्य दोनों में है।
भारत में संसदीय प्रणाली की विशेषताएँ :
- वास्तविक व नाममात्र की कार्यपालिका
- बहुमत वाले दल की कार्यपालिका
- सामूहिक उत्तरदायित्व का सिद्धांत
- विधायिका व कार्यपालिका का घनिष्ठ संबंध
- मंत्रिपरिषद् की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा लोकसभा का विघटन
- भारत ने सरकार का यह Model – ब्रिटेन से लिया है।
- लोकतांत्रिक सरकार के मुख्यतः दो रूप होते है- अध्यक्षात्मक व संसदात्मक । ये दोनों रूप किसी देश की विधायिका व कार्यपालिका के आपसी संबंधों पर निर्भर करते है।
- जहाँ शक्ति पृथक्करण (Power Sepration) पाया जाता है वहां अध्यक्षात्मक व्यवस्था होती है। उदाहरण USA
- जहाँ शक्ति सलंयन (Power Fusion) पाया जाता है अर्थात जहाँ विधायिका व कार्यपालिका में घनिष्ठ संबंध पाया जाता है वहां संसदीय व्यवस्था होती है। उदाहरण – India, कनाडा, आस्ट्रेलिया। हालांकि भारत की संसदीय व्यवस्था UK से प्रभावित है पर Same नहीं है। – ब्रिटेन में संसद, सम्प्रभु है, वह कुछ भी कर सकती है। जबकि भारत में ऐसा नहीं है।
- ब्रिटेन में राष्ट्र प्रमुख (Head of the State) – वंशानुगत है, राजतंत्रात्मक है जबकि भारत में निर्वाचित (गणतंत्रात्मक) है।
5.एकात्मक लक्षणों सहित संघात्मक व्यवस्था – भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएँ पीडीएफ
- हालांकि भारत में संघीय सरकार है पर संविधान में ‘संघीय (Federation) शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया है।
- अनु. 1 में वर्णित है’ इण्डिया अर्थात भारत राज्यों का एक संघ होगा’ (Union of States)
Union of States के अम्बेडकर ने दो तात्पर्य बताएँ है।
- भारतीय संघ राज्यों अर्थात इकाईयों के समझौते का परिणाम नहीं है।
- किसी राज्य को संघ से अलग होने का अधिकार नहीं है ।
1935 के अधिनियम में पहली बार एक संघीय शासन (Federation of India) की स्थापना का प्रावधान रखा गया । यद्यपि व्यावहारिक कठिनाइयों के चलते यह संघीय योजना लागू नहीं हो सकी।
संघात्मक विशषताएँ –
- दो सरकारें
- शक्तियों का विभाजन
- लिखित संविधान
- संविधान की सर्वोच्चता
- संविधान की कठोरता
- स्वतंत्र न्यायपालिका
- संसद के दो सदन, उच्च सदन ‘राज्य सभा’ राज्यों का सदन।
- एकात्मक लक्षण –
- एक संविधान
- एकल नागरिकता
- एकल न्यायपालिका
- आपात उपबंध
- राष्ट्रपति द्वारा राज्यपाल की नियुक्ति
- संशक्त केन्द्र
- अखिल भारती सेवाएँ। ]
- शक्तियों का विभाजन केंद्र की ओर झुका होना
- केंद्र के पास आर्थिक एवं राजस्व के अधिक संसाधन
- नए राज्यों का निर्माण और वर्तमान राज्यों के नाम, क्षेत्र सीमा में परिवर्तन करने की केंद्र के पास शक्ति ।
- विनाशी राज्यों का अविनाशी संघ।
- एकीकृत लेखा परीक्षण की व्यवस्था (CAG)
- संविधान संशोधन के संबंध में केंद्र को अधिक शक्तियाँ ।
इन संविधानिक प्रावधानों के अलावा अन्य तत्व भी है जो संविधान के संघीय स्वरूप को प्रभावित करते है – यथा भारत का दलीय स्वरूप, प्रधानमंत्री का करिश्माई व्यक्तित्व, योजना आयोग (Now NITI आयोग)
एस.आर. बोम्बई वाद (1994) में स्र्वोच्च न्यायालय ने कहा कि संघवाद संविधान मूल ढांचा है।
विभिन्न विद्वानों के विचार
- के.सी. व्हीयर – भारत अर्द्ध – संघ (Quasi Federation) है ।]
- मोरिस जॉन्स – ‘सौदेबाजी संघ’ (Bargnning Federation)]
- ग्रेनविल ऑस्टिन – ‘सहकारी संघवाद’ (Co-Operative Federation)
- आइवर जेनिग्सं – ‘अत्यन्त केन्द्रीकरण प्रवृति वाला संघ’
- अम्बेडकर – ‘संविधान को संघात्मक के तंग ढांचे में नहीं ढाला गया है।’]
- डी.डी. बसु – ‘भारतीय संविधान संघात्मक व एकात्मक का मिश्रण है।’
- ग्रेनविल ऑस्टिन – ‘सौहार्दपूर्ण संघवाद’ (Amicable Union)
- चार्ल्स टार्लटन (Tarlton) – ‘विषम संघवाद’ (Asymmetric Federation)
- के.सन्थनम – परमउच्चता संघ (Paramountcy Federation)
- पॉल एच. एपल्बी – ‘अत्यन्त संघीय’ (Extremly Federal)
- अल्फ्रेड स्टीपन – होल्डिंग टुगेदर फेडरेशन –
अल्फ्रेड स्टीपन ने अमेरिका के कमिंग टुगेदर फेडरेशन के स्थान पर भारत के संघ को ‘होल्डिंग टुगेदर फेडरेशन’ नाम दिया है
भारत में संघवाद निरंतर गतिशील रहा है और समय-समय पर इसके कई प्रतिमान (Model) – सहकारी, सौदेबाजी, असममित, राजकोषीय, प्रतिस्पर्धात्मक देखे गए हैं।
6. संविधान की सर्वोच्चता – भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएँ
- इसका तात्पर्य है – सरकार के तीनों अंग संविधान से शक्तियाँ प्राप्त करते है ।
- ब्रिटेन में संसद सर्वोच्च है। संसद द्वारा निर्मित विधि को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।
- यू.एस.ए. में न्यायपालिका सर्वोच्च है।
- भारत में संसदीय सम्प्रभुता व न्यायिक सर्वोचता में समन्वय स्थापित किया गया है। भारत में यू.एस.ए. की तरह न्यायपालिका सर्वोच्च नहीं है। क्योंकि भारत में ‘विधि की उचित नहीं बल्कि स्थापित प्रक्रिया’ है।
- भारत में संसद भी शक्तिशाली है। क्योंकि वह मूल ढांचे को छोड़ संविधान के किसी भी भाग में परिवर्तन कर सकती है। वही न्यायपालिका संसदीय विधियों का न्यायिक पुनर्विलोकन (Judicial Review) कर सकती है।
7.संकटकालीन प्रावधान –
- ये प्रावधान हमारे संघात्मक शासन को एकात्मक कर देते है।
- संविधान में तीन प्रकार के संकट काल का प्रावधान है।
- A. अनुच्छेद – 352 – राष्ट्रीय आपात् – तीन आधार पर घोषणा – युद्ध+बाहरी आक्रमण+सशस्त्र विद्रोह – मूल संविधान में सशस्त्र विद्रोह के स्थान पर आन्तरिक अशांति था। – 44वें संविधान संशोधन – 1978 (जनता पार्टी सरकार) द्वारा इसे सशस्त्र विद्रोह कर दिया गया।
- B. अनुच्छेद – 356 – राज्य में आपात् या राष्ट्रपति शासन। – संविधान के इस प्रावधान का सर्वाधिक दुरूपयोग हुआ है। – अनुच्छेद 356 जिसके लिए भीमराव अम्बेडकर का मानना था कि यह संविधान में एक निष्क्रिय दस्तावेज के रूप में बनकर रहेगा वह पिछले 70 वर्षों में भारतीय संविधान के अत्यधिक विवादास्पद प्रावधान के रूप में देखा गया है।
- C. अनुच्छेद – 360 – वित्तीय आपात् – एक बार भी उपयोग नहीं।
8. सार्वजनिक व्यस्क मताधिकार – अनुच्छेद – 326
- यह समानता के सिद्धान्त को लागू करता है।
- 61वें संविधान संशोधन (1989) द्वारा राजीव गांधी सरकार ने मतदान की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी।
- मताधिकार वचन के आधार – अनिवास, चितविकृति, अपराध या भ्रष्ट अथवा अवैध आचरण।
9. मूल अधिकार
- मूल संविधान के भाग -3 में 7 मौलिक अधिकार थे।
- 44वें संविधान संशोधन (1978) द्वारा अनु.-31 में उल्लिखित ‘सम्पत्ति का अधिकार’ हटा दिया गया तथा इसे ___ अनु. 300 (A) के अन्तर्गत ‘विधिक अधिकार’ (Legal Right) के रूप में अन्तर्विष्ट कर दिया गया।
- वर्तमान में 6 मौलिक अधिकार है जो न्याय या वाद् योग्य है। अनु. 32 (सर्वोच्च न्यायालय) तथा अनु. 226 के __तहत उच्च न्यायालय इनकी सुरक्षा के लिए रिट जारी करते है।
- मूल अधिकार नकारात्मक होते है, ये राज्य के विरूद्ध व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा करते हैं।
- मूल अधिकार आत्यान्तिक (Absolute) नहीं होते। जनहित में इन पर युक्तियुक्त प्रतिबंध लगाये जा सकते है।
10.मूल कर्त्तव्य
- मूल संविधान में मौलिक कर्त्तव्य नहीं थे। सोवियत संघ (U.S.S.R.) के संविधान से प्रभावित हो सरदार स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिश पर 42 वे संविधान संशोधन (1946) द्वारा संविधान में भाग 4(A) व अनु. 51(A) जोड़कर कुल (10) मूल कर्त्तव्य शामिल किये गये।
- 86 वें संविधान – 2002 द्वारा 11वां कर्तव्य जोड़ा गया। इस कर्त्तव्य के तहत माता-पिता या संरक्षक को 6 से 14
- वर्ष के बच्चों को शिक्षा के अवसर उपलब्ध करवाने का दायित्व निर्धारित किया गया।
11. त्रिस्तरीय सरकार
- मूल संविधान के अनु. 40 (नीति-निदेशक तत्व) के तहत प्रावधान है कि – ‘राज्य ग्राम पंचायतों की स्थापना करेगा’
- फिर 73 वें व 74 वें संविधान संशोधन (1992) द्वारा स्थानीय स्वशासन व्यवस्था को संवैधानिक दर्जा’ प्रदान किया गया।
- 73 वें संविधान संशोधन द्वारा संविधान में भाग – 9 व अनुसूचि 11वीं जोड़ी गयी जिसमें – (29) विषय है।
- 74 वें संशोधन द्वारा संविधान में भाग 9(क) अनुसूचि-12वीं जोड़ी गयी जिसमें (18) विषय है।
- स्थानीय स्वशासन – ‘राज्य-सूचि’ का विषय है।
- सामाजिक न्याय और आर्थिक लोकतंत्र के लिहाज से लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण भारतीय संविधान का एक ___ महत्त्वपूर्ण लक्षण साबित हुआ है।
12. नीति – निदेशक तत्व
- आयरलैण्ड के संविधान से गृहीत नीति-निदेशक तत्व संविधान के भाग-4 अनु. 36 से 51 तक है।
- नीति – निदेशक तत्व मूल अधिकारों के विपरीत सकारात्मक है।
- ये ‘कल्याणकारी राज्य’ तथा ‘आर्थिक व सामाजिक लोकतंत्र’ की स्थापना करते है।
- व्यष्टि (मूल अधिकार) एवं समष्टि (निदेशक तत्त्वों)का संयोजन अर्थात संविधान के भाग 3 में मूल
- अधिकार और भाग 4 में राज्य नीति के निदेशक तत्त्वों का समावेशन किया गया है। भारतीय संविधान जिसे सामाजिक क्रांति का दस्तावेज भी कहा गया है।
- ग्रेनविल ऑस्टिन – “मौलिक अधिकार और नीति निदेशक तत्त्व भारत के अतीत, वर्तमान और भविष्य तीनों को एक सूत्र में पिरो कर सामाजिक क्रांति की जमीन को मजबूत करते हैं।”
- ग्रेनविल ऑस्टिन ने इन दोनों को ‘राज्य की आत्मा’ कहा है।
13. एकीकृत, श्रेणीबद्ध, स्वतंत्र व सन्तुलनकारी न्यायपालिका तथा न्यायिक पुनरावलोकन –(Judicial Review)
- 13 (2) – राज्य ऐसी कोई विधि नहीं बनाएगा जो मूल अधिकारों को छीनती या न्यून करती है। 1973 के केशवानन्द भारतीवाद में संविधान के आधारभूत ढाँचे’ का जो सिद्धांत दिया था उसे ‘सुप्रीम कोर्ट एड्वोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसियेशन बनाम् यूनियन ऑफ इण्डिया वाद – 2016 (इसके द्वारा 99वां संविधान संशोधन-2014 – ‘न्यायिक नियुक्ति आयोग’ को सर्वोच्च न्यायलय ने अपास्त (Set Aside) कर दिया था।) में और विस्तृत कर दिया। इसमें कहा गया कि संसद द्वारा संविधान में ऐसा कोई संशोधन नहीं किया जा सकता है जो – (i) न्यायपालिका की स्वतंत्रता को आघात पहुँचाने वाला हो। (ii) संविधान के आधारभूत ढाँचे के विपरीत हो।
- (ii) शक्तियों के पृथ्थकरण सिद्धांत के प्रतिकूल हो। भारत में संसदीय सर्वोच्चता एवं न्यायिक सर्वोच्चता का मेल किया गया। ब्रिटेन की संसद की प्रभुसत्ता पर डी लोम्ब ने यहाँ तक कहा कि ”ब्रिटेन की संसद स्त्री को पुरुष और पुरुष को स्त्री बनाने के अलावा सब कुछ कर सकती है।” वहीं अमेरिका में न्यायपालिका की मजबूत स्थिति न्यायमूर्ति मार्शल के इस कथन से दिखाई देती है कि
“हम सब एक संविधान के भीतर रहते हैं लेकिन संविधान वैसा कि जैसा कि न्यायाधीश कहते हैं।”
14. जीवन्त संविधान –
पिछले 230 सालों में अमेरीकन संविधान में केवल – 27 संशोधन हुए है। जबकि पिछले 71 साल में भारतीय संविधान में 105 संशोधन हो चुके हैं। संविधान संशोधन –
- 101वां (2016) – वस्तु व सेवाकर (GST) से संबंधित है। (अनुच्छेद -246(A) जोड़ा गया है।)
102 वां संशोधन (2018) – राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा (अनुच्छेद – 338(B) जोड़ा गया है।) - 103 वां संशोधन (2019) – आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) को शैक्षणिक संस्थाओं व सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण (अनुच्छेद – 15(6) व 16(6) जोड़ा गया है।) –
- 104 वां संशोधन (2019) – लोकसभा व राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जाति व जनजाति का आरक्षण 2030 तक (2020 से 2030) तक बढ़ाया। लोकसभा व राज्य विधानसभा में एंग्लो-इण्डियन का अब मनोनयन नहीं (अनुच्छेद – 331,332,333 व 334 में संशोधन)
- 105 वां संशोधन (2021) – सामाजिक व शैक्षणिक रूप से पिछड़े (SEBC) की पहचान की राज्यों व केन्द्र शासित प्रदेशों की शक्ति का सरंक्षण (अनुच्छेद – 338(B), 342 व 366 में संशोधन)
भारतीय संविधान जो कि एक गतिशील और जीवंत दस्तावेज के रूप में जाना जाता है और पिछले 70 वर्षों से भारत की लोकतांत्रिक राज्य व्यवस्था का इसने जिस प्रकार से मार्गदर्शन किया है उससे भारतीय लोकतंत्र न केवल विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में जाना जाता है, बल्कि भारत में विभिन्न प्रकार के संकटों और संघर्षों को संवैधानिक ढाँचे के भीतर ही सुलझाने की एक महत्त्वपूर्ण प्रवृत्ति का विकास हुआ है।
“यदि लोग योग्य चरित्रवान और ईमानदार हैं तो वे एक बुरे संविधान को भी उत्तम संविधान बना सकेंगे और यदि उनमें गुणों का अभाव होगा तो संविधान देश की सहायता नहीं कर सकेगा।” डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
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